शनिवार, 29 मार्च 2008

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ये रिश्ते सूरज से ढल चुके हैं
पानी मे गल चुके है
तेरी याद आई नही है
और भुलाने की कोई कसम खाई नही है
मैं सुस्त बेजान सा विचार शून्य मे हूँ बस काफी है
हाथ अगढ़ई के लिए भी उठते नही है
सिर दुआओं के लिए भी झुकते नही है
मैं एक कामयाब आदमी कामयाब हुआ आज तुम्हे भुलाने मे
किंतु पा न सका मैं कामयाब आदमी